Category Archives: A Trainer’s Diary

ना-समझ-ना!

किसी अपने का ‘ना समझना’ किसी पराए की नासमझी से ज़्यादा दुख देता है. …………… इंसान को जितना ग़म नुक़सान से होता है उससे ज़्यादा ग़म होता है उम्मीद के टूटने से. और हममें से तक़रीबन हर शख़्स सारी समझदारी … Continue reading

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ख़ज़ाने की खोज!

कभी कभी आपको लगता है कि आपने ज़िंदगी में कुछ भी सही नहीं किया.   ………….. आपने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसका ‘हासिल’ जुड़ कर किसी दिन एक ‘फल देने वाला’ मुकम्मल दरख़्त बने, आपने ऐसे कोई रिश्ते नहीं बनाए … Continue reading

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छोटे बड़े लोग!

बड़े शहरों की बड़ी इमारतों में कई लोग रहते हैं अपनी छोटी आखों में बड़े सपने लिए.   ………….. इनमें से अधिकतर उन जगहों से आए थे जो छोटी पड़ गई थीं या तो इनके बड़े ख़्वाबों के लिए या इनकी … Continue reading

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सफ़र सिफ़र से!

जब ये सोचें कि आप ‘कहां तक पहुंचे’ तो ये भी याद रखिये कि ‘कहां से शुरु हुए थे’. ………….. इंसान को अपने तय किये गए का सफ़र का एहसास रहना चाहिए, वरना वो हर कुछ वक़्त में रास्ते पर … Continue reading

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अपने हक़ में

जो कहते हैं कि आपके मुश्किल वक़्त में आपका साथ देंगे, उनमें से ज़्यादातर उस वक़्त आपका साथ… नहीं देंगे. ……………… और ऐसा नहीं है कि उन्होंने आपसे झूठ कहा था. जब उन्होंने ये कहा था तब दरअसल वो भी … Continue reading

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मर्ज़ी के मरीज़!

आप कौन सा काम करते हैं वो शायद आपके हाथ में ना हो पर उसे कैसे करते हैं ये हमेशा आपके हाथ में होता है.         …………….. हर शख़्स चाहता है कि उसे अपनी मर्ज़ी का काम मिले – वो काम … Continue reading

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सुख का सवाल!

सुख एक सहज अनुभूति है, अपनी बौद्धिक खुजाल से उसे एक जटिल प्रक्रिया मत बनाइये.         …………….. ज़िंदगी क्या है? हम यहां क्यों हैं? ‘ये’ वैसा क्यों नहीं? रिश्तों के क्या मायने हैं? क्या सही है? क्या गलत है? – ऐसे … Continue reading

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नज़र लग जाती है!

अक्सर नज़र में आने की कोशिश में जो ज़्यादा अहम है वो नज़रअंदाज़ होने लगता है.        …………….. लोगों की दिक़्क़त ये है कि वो औरों का ध्यान खींचने और उनकी निगाह में आने के चक्कर में धीरे धीरे अपना ‘सत’ … Continue reading

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सीधी सच्ची बात!

कभी कभी बात के पीछे के जज़्बात इतना हावी हो जाते हैं कि बात तो पहुंच ही नहीं पाती.    …………….. जी हां! अपनी बात किसी अपने को कभी यूं ही कह दिया कीजिये ना! – बिना प्यार की चाशनी … Continue reading

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On International Day of Families! :-)

जो परिवार किसी एक शख्स की कोशिशों या क़ुर्बानियों पर खड़ा हो वो आगे पीछे बिखर ही जाता है. …………….. जी हां, एक घर…एक परिवार बनाना एक साझा ज़िम्मेदारी होती है. पर अक़्सर कोई एक शख़्स परिवार को जोड़े रखने … Continue reading

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