साथ चलने से रास्ता आसान नहीं होता पर कम से कम सुनसान नहीं रहता.
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ज़िंदगी में कोई एक दूसरे के दुख की वजह कम नहीं कर सकता पर दुख का एहसास ज़रुर घटा सकता है. इसके लिए कई बार न कुछ करना पड़ता है और न कुछ कहना पड़ता है, बस साथ ‘होना’ पड़ता है.
जी हां! मुश्किल वक़्त में अगर ये महसूस हो कि आप अकेले नहीं हैं तो बदलता तो कुछ नहीं पर चिंता घटती है और सब्र बढ़ता है…बेचैनी घटती है और सुक़ून बढ़ता है…नाउम्मीदी घटती है और यक़ीन बढ़ता है.
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आइये एक दूसरे को ‘साथ की रोशनी’ दें. कुछ और हो ना हो…’अच्छा लगेगा’. 🙂