कुछ लोगों के लिए ज़िंदगी छोटे छोटे समझौतों की एक लंबी से क़तार होती है.
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वो रोज़ छोटी छोटी लड़ाइयां चुपचाप हार रहे होते हैं और मजबूरी के कड़वे घूंट पी रहे होते हैं. पर देखो तो उनकी ज़िंदगी में कमोबेश सब ठीक ही लगता है. कोई एक बला का दुख, एक बड़ी तक़लीफ़, या एक गहरी कमी – ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता. इसीलिए उनसे किसी को न तो हमदर्दी की कोई वजह दिखती है और न वो ग़मग़ुसारी के ज़रुरतमंद या क़ाबिल लगते हैं.
पर, जो लगता है उसके उलट, ऐसे लोग दरअसल अंदर से परेशानी में होते हैं. उनके अंदर हमेशा एक बेचैनी सी घर किये रहती है – सर में एक भारीपन, मन में एक ख़ला, दिमाग खिंचा खिंचा सा, नींद उचटी, धड़कन उखड़ी सी, और सांस उथली. ऐसे लोग एक अलग ही तरह से ‘अकेले’ होते हैं. और पता है ऐसे लोग कभी अपनी तकलीफें किसी को नहीं बता पाते, और यही…
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एक दिन इनकी सबसे बड़ी तक़लीफ़ बन जाती है.