ज़िंदगी में बदलाव होंगे ही, इसलिए… ख़ुद में ठहराव लाइए.
…………..
हमारा अपनी ज़िंदगी पर काबू दरअसल एक छलावा है. अपने आपको एक दायरे में रख कर, उसमें कुछ क़ायदे बुन कर, और आस पास एक मुंडेर बना कर हमें लगता है हमारी ज़िंदगी हमारे काबू में है. पर सच तो ये है कि ये हमारा यक़ीं कम और गुमां ज़्यादा है. ये गुमां हसीन है और जरूरी भी, पर है तो ये गुमां ही.
क्योंकि जब ज़िंदगी अपने क़रतब दिखाती है तो हमें अचानक ये एहसास होता है कि हमारे दायरे कितने संकरे हैं, क़ायदे कितने कमज़ोर और मुंडेर कितनी छोटी. इसीलिये बाहर की बुनकारी की अलावा हमें एक और चीज़ करना चाहिए – अंदर की तैयारी. खुद को पुख़्ता करना ही एकमात्र तरीक़ा है बदलाव में बहने पर ‘बने रहने’ का.
…………..
आइये दरख़्तों की तरह जड़ें बनाएं. वही हमें क़ायम रखेंगीं.