इंसान के ख़्वाब उसके सच का एक हिस्सा बयां कर देते हैं.
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यहां मैं उन ख़्वाबों की बात नहीं कर रहा जो इंसान जागती आखों से तसव्वुर में बुनता है. मैं यहां उन ख़्वाबों की बात कर रहा हूँ जो उसे बंद आखों में आते हैं और उसे अचानक चलती नींद से बाहर फेंकते हैं – बदहवास… हांफता… पसीना पसीना सा. ये सपने उस हदस और हवस के गवाह हैं जो हवास में बाहर नहीं आ पातीं.
कहते हैं ख़्वाब में इंसान का दिमाग़ नीम-बेहोशी में…पगलाया सा…खुद में गहरे मौजूद ख़यालों और दबे सवालों को उछालता है, और उस खेल में ये छिटक कर आपके होश की सरहद के नज़दीक आ कर गिरते हैं. और उस हाशिये पर ख़्वाब बनते हैं, जो एक झलक देते हैं आपको आपके भीतर मौजूद एक अनजानी दुनिया की.
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उस झलक को ध्यान से देखिये, आपको मसले मिलेंगे…सुलझाने के लिए.